जिंदगी ऐसे दोराहे पर लाकर खड़ा कर देती है जहां एक वो राह होती है जिसपे हमें चलना है। और दूसरी वो होती है जिसपर चलने कि हमारी इच्छा होती है। मगर इच्छा और कर्तव्य दोनों में से किसी एक को ही हमें चुनना होता है।
यदि हम कर्तव्य को चुनते हैं तो इच्छाएं अधूरी रह जाती हैं। और यदि इच्छाओं को चुनते हैं तो कर्तव्य पूरे नहीं कर पातें।