आप जिसे चाहें वो आप कि किस्मत में नहीं और किस्मत से जो मिले वो भी आपका नहीं। देखा जाए तो दोनों ही सूरतों में आप खाली।
कभी कभी लगता है, इस दिल को निकालकर कहीं ताले में बंद कर दूं। तो कभी लगता है, बैठकर इससे थोड़ी बातें कर लूं। मगर फिर लगता है, कौन सा ऐसा ताला है जो इसे रोक पाएगा। मैं नाम अपना लूंगा और वो बात उसकी करेगा।
दिल को समझना जरूरी है, मगर किसके? यही तो सवाल है।
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